श्री जिनपीयूषसूरीजी

परम पूज्य गुरूदेव शासन प्रभावक खरतरगच्छाचार्य
श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वर जी म.सा.: एक परिचय

 

आदि युग से आधुनिक युग तक श्रमण संस्कृति की दीपशिखा को प्रज्वलित करते रहने में अपना सर्वस्व समर्पितकरने वाले अनेकानेक तेजस्वी श्रमण-श्रमणियों की सहभागिता रही है। जिन्होंने अपने रत्नत्रय की शान से जिनशासन की कीर्ति कौमुदी को संपूर्ण विश्व में चमकाया है।
महाराजा श्रेणिक के मिथ्यात्व के अंधकार को सम्यक्त्व के प्रकाश में परिवर्तित करने को श्रेय महामुनि अनाथी को है। जिनालयों और जिनप्रतिमाओं से भारतवर्ष की भव्यता को लक्षगुणी करने वाले महाराजा संप्रति के जीवनोत्थान कामंगल मार्ग ज्ञात कराने का श्रेय आर्य सुहस्तिसूरिजी को थे। अट्ठारह देशों के स्वामी राजा कुमारपाल को शिवोपासकसे जिनोपासक श्रमणोपासक बनाकर अधीनस्थ राज्यों में अहिंसा का विजयपताका लहलहाने का श्रेय कलिकालसर्वज्ञश्री हेमचन्द्राचार्य को है।

 

इसी श्रृंखला में खरतरगच्छ के गौरव गाथा को दशों दिशाओं में गुजाने वाले प्रभावक आचार्य छत्तीसगढ़ विभूषण श्री मज्जिनमहोदयसागरसूरिजी म.सा. हुए हैं जिन्होंने जिनशासन को पूज्य गुरुदेव श्री जिनपीयूषसागरसूरि जी म.सा. के रूप में एक अनमोल रत्न दिया है। जो वक्तव्य से नहीं व्यक्तित्व से जाने माने और पहचाने जाते हैं।

 

जीवन-वृत्तांतः
छत्तीसगढ़ का प्रयाग सोदू-पैरी- महानदी का त्रिवेणी संगम स्थल तीर्थराज नवापारा राजिम की पावन भूमि में पिता श्री नेमीचंदजी एवं माता जमुनादेवी की कुक्षी से 8 दिसम्बर सन् 1962 (सं. 2019 मि.सु. 12) को एक बालक का जन्म हुआ, नाम प्रदीप (लुणकरण) रखा गया। बचपन से ही सुसंस्कारों का बीजारोपण हुआ। जैसे बीज की निष्पत्ति में वृक्ष का प्रतिबिम्ब, नीर की एक बूंद में सागर की सत्ता, उषा की प्रथम पंक्ति में सूर्याेदय विद्यमान रहता है, वैसे ही बाल्यकाल से ही आप में सेवा सत्कार्य सयम की स्वर्णिम आभा में महान व्यक्तित्व का प्रकाश समाहित था।

 

आपश्री ग्यारह वर्ष के हुए तब आपकी इकलौती बहन शोभा (पू. प्रियंकराश्री जी म.सा.) ने छ.ग. रत्न शिरोमणिः पूमनोहरश्री जी म.सा के पास भगवती दीक्षा अंगीकार किया उनकी विहार यात्रा पालीताणा की ओर होने लगा तबआपका बालपन व्यवहारिक अध्ययन को छोड़कर पदयात्रा और सेवा के भाव से भावित हो चलने को उत्सुक हुआ।पदयात्रा से संयमयात्रा की ओर आपका प्रयाण होने लगा। आपश्री के संयमभाव को पुष्पित एवं पल्लवित करने काश्रेय महतरा श्री मनोहरश्री जी म.सा. को जाता है। आपश्री ने उन्हीं की प्रेरणा से सं. 2041 फाल्गुन सुदि 2 के दिनदुर्ग मालवीय नगर में परम पूज्य जिनउदयसागरसूरि जी म.सा. से दीक्षा अंगीकार कर प.पू. महोदयसागर जी म.सा.को अपना जीवन समर्पित किया जिनशासन के आकाश में पीयूषसागर रूप एक दिव्य नक्षत्र का उदीयमान हुआ।

 

आपके मृदु व्यवहार में पीयूष (अमृत) झलकता है आपनी की वाणी हित-मित और प्रिय है आपके संयम सुवास एवं साधना सौरम पर जनसाधारण की श्रद्धामन्ति सहज हो जाती है। संयम साधना, तप आराधना, गुरु सेवा व लक्ष्य संप्राप्ति में आप श्री पूर्णतः सफल रहे हैं।

 

अपनी क्षमता, संयमबल, आत्मजागृति से संघ गच्छ के उत्तरदायित्वों को पूर्ण रूप से वहन कर रहे हैं। आपश्री की पावन प्रेरणा से जिनशासन के महान कार्य संपन्न हो रहे हैं। आपश्री के सागर सम गंभीर जीवन को शब्दों में अभिव्यक्त करना दुष्कर है प्रभावशाली व्यक्तित्व, अनुकरणीय कृतित्व, प्रखर संयम साधना का संचल, आत्म बल, उच्चकोटि की लोकप्रियता, परिणाम भद्रता आदि प्रभावक गुणों की विद्यमानता में भी आपश्री के स्वभाव की विनम्रता, आत्मीयता, सहिष्णुता की कोई मिसाल नहीं उफान और तूफान का जवाब मुस्कान से देना आपश्री की सहज वृत्ति है ऋजुता, समता, कथनी करनी की एकरूपता आपश्री के व्यक्तित्व के आभूषण हैं।

 

यद्यपि कुछ लोग आपश्री को अल्पभाषी कहते हैं, पर सत्य तो यह है कि आपका जीवन बोलता है, आपका सयम बोलता है, आपका आचरण बोलता है आपकी मधुर स्वरलहरी हृदय को हर्षित करने वाली अलख को आनंद देने वाली और प्राणों को प्रसन्नता प्रदान करने वाली है। उपधान में आराधकों को आराधना से जोड़ने की कला आपकी बेजोड है, निराली है।

 

परम पूज्य खरतरगच्छाचार्य श्री जिनकैलाशसागरसूरीश्वर जी म.सा. की आज्ञा एवं महासंघ की बैठक के सर्वसहमतिनिर्णयानुसार नागपुर में श्री अजितनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट के तत्वावधान में चतुर्विध संघ की गरिमामयी उपस्थिति तथा महासंघ के प्रतिनिधि एवं शताधिक संघों की साक्षी में आपनी का आचार्य पदारोहण 11 जून 2016 को गच्छ गौरवपूर्वक सम्पन्न हुआ। यह ऐतिहासिक क्षण अपनी स्वर्णिमता पर इतराता भी होगा, इठलाता भी होगा।

 

णमो आयरियाण के शाश्वत पद से विभूषित होने के बाद जिनशासन की यशोगाथा का मंगलनाद करते हुए आपने एक वर्ष के अल्प समय में विदर्भ, महाकौशल, मालवा, मारवाड़ आदि क्षेत्रों में विचरण किया। जयपुर में आयोजित आचार्य पदारोहण एवं भगवती दीक्षा में आपकी निश्रा से संघ लाभान्वित हुआ। महाकौशल की धन्यधरा पर श्रीनमिऊण पाश्र्वनाथ तीर्थ का उदीयमान होना आपश्री के उत्कृष्ट तपोबल की ही फलश्रुति है।

 

पिता: श्रीमान नेमीचंद जी पारख
माता: श्रीमति जमनाबाई जी पारख प्रदीप पारख
सांसारिक नाम: प्रदीप पारख
जन्म: वि.सं. 2019, मिगसर सुदि 12 (08.12.1962)
भाई: श्रीमान् प्रकाश जी, प्रमोद जी, गौतम जी लेखराज जी पारख
बहन: शोभा जी पारख (वर्तमान में साध्वी प्रियंकराश्री जी म.सा.)
दीक्षा: वि.सं. 2041, फाल्गुन सुदि 2 (21.021985)
दीक्षा स्थलः मालवीय नगर, दुर्ग (छ.ग.)
दीक्षा प्रदाताः प.पू. आचार्य श्री जिनउदयसागरसूरीश्वर जी म.सा.
दीक्षा गुरु: प.पू. आचार्य श्री जिनमहोदयसागरसूरीश्वर जी म.सा.

शिष्य प्रशिष्य: 1. मुनि श्री सम्यकरत्नसागर जी म.सा. 2. मुनि श्रीमहेन्द्रसागर जी म.सा.
3. मुनि श्रीमनीषसागर जी म.सा. 4. मुनि श्रीवैराग्यसागर जी म.सा.
5. मुनि श्रीविवेकसागर जी म.सा. 6. मुनि श्री ऋषमसागर जी म.सा.
7. मुनि श्री वर्धमानसागर जी म.सा. 8. मुनि श्रीविराटसागर जी म.सा
9. मुनि श्रीसमर्पितरत्नसागर जी म.सा. 10. मुनि श्रीसंकल्परत्नसागर जी मसा.
11.मुनि श्रीऋजुप्रज्ञसागर जी म.सा. 12. मुनि श्रीसंवेगरत्नसागर जी म.सा.
13.मुनि श्रीविनम्र सागर जी म.सा. 14. मुनि श्रीविशुद्धसागर जी म.सा.
15.मुनि श्री प्रशांतसागर जी म.सा. 16. मुनि श्री शोैर्यरत्नसागर जी म.सा.
17. मुनि श्री प्रषमसागर जी म.सा. 18. मुनि श्री वैभवसागर जी म.सा.
19. मुनि श्री षासनरत्नसागर जी म.सा. 20. मुनि श्री हर्षवर्धनसागर जी म.सा.
21. मुनि श्री मैत्रीवर्धनसागर जी म.सा. 22. मुनि श्री जयवर्धन सागर जी म.सा.
23. मुनि श्री नयवर्धनसागर जी म.सा. 24. मुनि श्री पुण्यवर्धनसागर जी म.सा.
25. मुनि श्री आत्मवर्धनसागर जी म.सा. 26. मुनि श्री जीतवर्धनसागर जी म.सा.
27. मुनि श्री गुणवर्धनसागर जी म.सा. 28. मुनि श्री सन्मार्गरत्नसागर जी म.सा.
29. मुनि श्री समन्वयरत्नसागर जी म.सा. 30. मुनि श्री संवरत्नसागर जी म.सा.
31. मुनि श्री शाष्वतरत्नसागर जी म.सा. 32. मुनि श्री समर्थरत्नसागर जी म.सा.
33. मुनि श्री सार्थकरत्नसागर जी म.सा. 34. मुनि श्री श्लोकरत्नसागर जी म.सा.
35. मुनि श्री यशोवर्धनसागर जी म.सा. 36. श्री जिनवर्धनसागर जी म.सा.
37. मुनि श्री श्रमणरत्नसागर जी म.सा.

 

पूज्यश्री के चातुर्मास

सं. 2042 धमतरी सं. 2043पावापुरी स. 2044 सतना
सं. 2045 सिवनी सं. 2046 धमतरी सं. 2047 रायपुर
सं. 2048 राजनांदगांव सं. 2049 अहिवारा सं. 2050 दुर्ग
सं. 2051 सिवनी सं. 2052 दिल्ली सं. 2053 जयपुर
सं. 2054 बाड़मेर सं. 2055 चैहटन सं. 2057 नंदुरबार
सं. 2058 बाड़मेर स. 2056 अहमदाबाद सं. 2059 गांधीधाम
स. 2060 अहमदाबाद सं. 2061 बनारस सं. 2062 नवापारा
सं. 2063 मलकापुर सं. 2064 शिखरजी सं. 2065 नागपुर
सं. 2066 दुर्ग सं. 2067 जगदलपुर सं. 2068 रायपुर
सं. 2069 चैन्नई सं. 2070 सिकन्द्राबाद सं. 2071 शिखरजी
सं. 2072 जबलपुर सं. 2073 अजमेर सं. 2074 बाड़मेर
सं. 2075 नागपुर सं. 2076 कोलकाता सं. 2077 सिवनी
सं. 2078 नमिऊण तीर्थ सं. 2079 कोटा

 

अंजनशलाका प्रतिष्ठाः
छत्तीसगढ़: नयापारा, पावर हाउस, राजनांदगांव, सहसपुर लोहारा, वैशाली,
नारायणपुर, ठेकवा, धमतरी, खैरागढ़, देवकर, दुर्ग, कोमाखान, बेरला
भानुप्रतापपुर, रायपुर, अभनपुर
महाराष्ट्र:
डोडायचा, बलसाणा, मालेगाव, नंदुरबार, अमरावती, भद्रावती,
नागपुर, गोन्दिया, धामणगांव, नाचणगांव, अचलपुर, वरठी,
चन्द्रपुर, कामठी, वर्धा
मध्यप्रदेश: अष्टापद महातीर्थ, नमिऊण तीर्थ, लालबर्रा, लांजी, कटंगी, रतलाम, जावरा, भोपाल, जबलपुर, नलखेड़ा,
आन्ध्रप्रदेशः सिकन्द्राबाद, मेडचल 72 जिनालय तीर्थ, कोत्तागुड़म
बिहार: कुण्डलपुर, भागलपुर, सीतामढ़ी
झारखण्ड: सम्मेतशिखर तीर्थ, ऋजुबालिका तीर्थ
प्श्चिम बंगाल: चिनसुरा (कोलकाता)
तमिलनाडु: चैन्नई
गुजरातः गांधीधाम
राजस्थानः प्रतापगढ़, जोधपुर, नागेश्वर तीर्थ, केकड़ी, जयुपर, संबोधि धाम, लब्धि निधान तीर्थ

 

उपधान तप आराधना
सन् 2005 2006ः भद्रावती तीर्थ सन् 2009.2011: कैवल्यधाम (छ.ग.)
सन् 2012: चैन्नई सन् 2007: शिखरजी तीर्थ
सन् 2017: बाड़मेर

 

छःरि पालित संघ:
सन् 2004 नंदुरबार से बलसाणा तीर्थ
सन् 2005 नवापारा से कैवल्यधाम तीर्थ
सन् 2009 दुर्ग से कैवल्यधाम तीर्थ
सन् 2010 कैवल्यधाम तीर्थ की 108 यात्रा
सन् 2010 धमतरी से कैवल्यधाम तीर्थधाम
सन् 2010 नागपुर से भद्रावती तीर्थ
सन् 2011 वारासिवनी से कटंगी
सन् 2013 जावरा से अष्टापद महातीर्थ
सन् 2022 आलोट से नागेश्वर तीर्थ

 

दीक्षा प्रदान:
50 से अधिक संयम आत्माओं को दीक्षा प्रदान किया।

 

साहित्य संपादन, लेखन एवं पे्ररणा

आगामी साहित्य कल्पसूत्र, सच्चाई छुपाने से सावधान, स्पष्टीकरण, आनंदघन का धनानंद भाग 1, कमजोर कड़ी कौन?, अमृत सरगम, अमृत झरना, अमृत मंथन, गागर में सागर, प्रभु पूजा संग्रह, दादागुरूदेव पूजन भजन, दादागुरूदेव पूजन, चलों करें प्रभु से प्रीत, अपनों से अपनी बात आनंद रत्नाकर, आनंदघन पदावलि, देवचंद्रजी चैविसी सार्थ जिन मंदिर व्यवस्था निर्देशिका, पर्दाफाश, नवकार करे भवपार, भोमिया चालिसा, नमिऊण चालीसा देवदर्शन गुरुवंदन, राई देवसि प्रतिक्रमण, पंचप्रतिक्रमण एवं सप्तस्मरणसार्थ, पंचप्रतिक्रमण 108 यात्रा, अणुव्रत, कौन पहुँचे मोक्षपुरी, अरिहंत पद आरक्षण, सॉरी गाँड नो एंट्री, उपधानतप आराधनाविधि, सचित्र भक्तामर मंगल प्रार्थना, सम्यक प्रणम्य, आनंदघन का घनानन्द भाग 2

आगम की कसौटी पर खरा कौन ? सर्जन के स्वस्तिक, सहस्त्राब्दी गौरव गाथा