हमारा परिचय
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अनंत करूणानिधान प्रभु महावीर का अविरल शासन आध्यात्मिक एवं मानवीय मूल्यों की प्रतिस्थापना करता हुआ अविच्छिन रूप से प्रवाहमान था। मानव समाज के प्रत्येक अंग को अपने उत्कृष्ट आचार एवं अपूर्व ज्ञान रश्मियों से आलौकित कर भगवान के उपदेश सभी के हृदय में प्रवेश कर चुके थे। कालान्तर में जिन शासन का एक वर्ग चैत्यवासी परम्परा के रूप में उभरा, जो बाद में शिथिलाचार का शिकार हुआ। विक्रम संवत की ग्यारहवीं सदी आने तक इनका प्रभाव एवं विस्तार अपने चरम पर पहुँच चुका था। करीब 1000 वर्ष पूर्व आचार्य जिनेश्वरसूरि ने तत्कालीन व्याप्त शिथिलाचार एवं चैत्यवासी परम्परा के विरुद्ध अपने उत्कृष्ट चरित्र पालन तथा विवेक-तर्कयुक्त विद्वता के बल पर क्रांति का उद्घोष किया। गुजरात के अणहिलपुर पाटण के राजदरबार में वि.सं. 1080 में हुये शास्त्रार्थ में आचार्य जिनेश्वरसूरि ने चैत्यवासी परम्परा के आचार्य सूराचार्य को परास्त किया। उनके चारित्र पालन की विशुद्धता एवं प्रखर विद्वत्ता के कारण पाटण नरेश दुर्लभराज ने वि.सं. 1080 में आचार्य जिनेश्वरसूरि को ‘खरतर’ अर्थातः ‘खरा तरा’ विरूद प्रदान किया एवं उनके बाद उनके द्वारा प्ररूपित पथ पर उनके अनुयायियों एवं साधु-साध्वियों के समुदाय को ‘खरतरगच्छ’ के नाम से प्रसिद्धि मिली।

खरतर विरूद प्राप्ति के 1000 वर्ष पूर्ण होने के ऐतिहासिक प्रसंग पर छत्तीसगढ़ विभूषण प.पू. खरतरगच्छाधिपति श्री जिनमहोदयसागर सूरीश्वर जी म.सा. के सुशिष्य रत्न वर्तमान खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूषसागरसूरीश्वर जी म.सा की प्रेरणा से खरतरगच्छ सहस्त्राब्दी समारोह के भव्य आयोजन की परिकल्पना तथा उसे क्रियान्वित कर सम्पूर्ण खरतरगच्छ श्रीसंघ को उर्जावान, एकजुट करने तथा इसके बहुआयामी उन्नयन के पावन उद्देश्य के लिये इस ऐतिहासिक प्रसंग पर खरतरगच्छ सहस्त्राब्दी के भव्य आयोजन हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की एक महोत्सव आयोजन समिति के गठन की तीव्रता से आवश्यकता महसूस की जा रही थी। गच्छ के गौरवमय इतिहास तथा इसकी उपलब्धियों को संकलित करने एवं भविष्य की परिकल्पना करने के साथ-साथ भावी पीढ़ी को गच्छ के प्रति जोड़ने के लिये ‘श्री खरतरगच्छ सहस्त्राब्दी महोत्सव समिति’ का गठन किया गया है।