सुधर्मा स्वामी की पाट परम्परा की गौरवशाली विरासत की श्रृंखला में भगवान महावीर द्वारा निर्देशित सुविहित पथ का पालन करते हुए आचार्य जिनेश्वरसूरि को अणहिलपुर पाटण नरेश द्वारा वि.सं. 1080 में अपनी राजसभा में चैत्यवासी सूराचार्य पर शास्त्रार्थ में विजय प्राप्तकर ’खरतर’ विरूद प्रदान करने से क्रांतधर्मी एवं शास्त्र सम्मत चारित्र एवं आचार का पालन करने वाले ’खरतरगच्छ’ का प्रवर्तन हुआ।
अपने स्थापना काल से ही खरतरगच्छ अपने विशिष्ट एवं प्रखर चारित्र, अपने आचार्यों तथा साधुगणों के पाण्डित्य एवं मेधा तथा जिनशासन को समर्पित श्रावक-श्राविकाओं की धर्म तथा समाज हित हेतु अप्रतिमा उदारता तथा लोक मंगल की कामना के साथ जैन संघ तथा भारतीय समाज में अपनी विशिष्ट छवि स्थापित करने में सफल रहा है।
1000 वर्षों के गौरवशाली एवं लम्बे कालखण्ड में खरतरगच्छ के कई प्रसिद्ध आचार्यों, साधु साध्वियों विद्वानों, साहित्यकारों, चित्रकारों मूर्तिकारों तथा दानदाताओं व परोपकारियों ने हमारे देश के सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवेश को बहुविध समृद्ध किया है। आचार्य जिनेश्वरसूरि आचार्य अभयदेवसूरि, आचार्य जिनवल्लभसूरि आचार्य जिनदत्तसूरि मणिधारी आचार्य जिनचंद्रसूरि, आचार्य जिन कुशलसूरि, अकबर प्रतिबोधक आचार्य जिनचंद्रसूरि मंत्री मण्डन, ठक्कुर फेरू, महोपाध्याय समयसुंदर, उपाध्याय देवचन्द्र महोपाध्याय क्षमाकल्याणजी, अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा, महोपाध्याय विनय सागर आदि खरतरगच्छ के साहित्यकारों के नाम विशेष उल्लेखनीय है। खरतरगच्छ ने भारतीय साहित्य संसार को हजारों ग्रंथ रत्न प्रदान किये हैं। आगम टीकाएँ, सैद्धान्तिक प्रकरण, वैधानिक एवं सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरमूलक साहित्य योग एवं ध्यानपरक साहित्य, दर्शन एवं न्याय साहित्य व्याकरण – साहित्य, काव्य लक्षण छन्द -साहित्य, कोष साहित्य, वास्तु मद्रु रत्न धातु – साहित्य, मंत्र साहित्य, ज्योतिष साहित्य, महाकाव्य तथा टीका साहित्य, कथामूलक काव्य साहित्य, रास चौपाई आदि काव्य साहित्य, गीत आदि साहित्य, औपदेशिक साहित्य आदि विविध विषयों एवं विधाओं से भारतीय साहित्य वाड्मय को बहुविध समृद्ध किया। इन खरतरगच्छ विद्वानों ने अनेकों महत्वपूर्ण ग्रंथों का लेखन किया एवं विभिन्न जटिल आध्यात्मिक विषयों पर मौलिक चिंतन प्रदान किया। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न सिद्धांतों की अवधारणा तथा उनके अनुप्रयोग की गहरी समझ पैदा हुई। 400 वर्ष पूर्व महोपाध्याय श्री समयसुंदर जी एक उत्कृष्ट एवं अलौकिक विद्वान थे, जिन्होंने 8 शब्दों के एक वाक्य को 8,00,000 तरीकों से परिभाषित एवं वर्णित किया, जो उनके विलक्षण ज्ञान एवं प्रतिभा का परिचायक है।
खरतरगच्छ श्रावकों तथा संघों ने कई प्रसिद्ध मन्दिरों एवं तीर्थों का निर्माण करवाया, जो मूर्ति एंव स्थापत्य कला के अद्भुत चमत्कार हैं। 250 वर्ष पूर्व पालीताणा (गुजरात) में खरतरगच्छ श्रावक श्री मोतीशाह ने तीर्थ यात्रियों की दुर्घटनाओं को देखते हुए उनकी सुरक्षा हेतु दो पहाड़ियों को जोड़कर एवं उन पहाड़ों के मध्य की विशाल भूमि को भरवाकर एवं समतल कर मोतीशा की टूंक स्थापित कर एक भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया। कुछ खरतरगच्छ अनुयायियों द्वारा निर्मित अनेकों पेंटिंग तथा कलाकृतियां मंत्रमुग्ध कर देने वाली तथा अमूल्य हैं। खरतरगच्छ द्वारा स्थान-स्थान पर ज्ञान भण्डार, संग्रहालय, पुस्तकालयों आदि का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है, जिसमें जैसलमेर ज्ञान भण्डार, अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर आदि प्रमुख हैं, यहाँ अनेकों अलभ्य पांडुलिपियों, ग्रंथों आदि का विशाल संग्रह है। इस सम्प्रदाय के भामाशाह जैसे अनेकों दानवीरों तथा परोपकारियों द्वारा अनेकों ग्रंथ भंडार, तीर्थ स्थल, विद्यालय, कॉलेज, अस्पताल, धर्मशाला, वृद्धाश्रम, गौशाला सभागार आदि संस्थानों का निर्माण तथा संचालन किया जा रहा है, जहाँ बिना किसी जाति, धर्म, लिंग, राज्य, भाषा या प्रांत के भेदभाव सभी जरूरतमंद एवं कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता की जाती है। तीर्थकरो से संबंधित सभी कलात्मक तीर्थ भूमियों का जीर्णोद्धार व रख रखाव खरतरगच्छ अनुयायियों ने किया। खरतरगच्छ आचार्यों ने अनेकों राजाओं एव शासकों को सही मार्ग दिखलाने के लिये उनके पास जाकर उन्हें प्रतिबोधित किया एवं विविध समयावधि के लिये पशुवध पर रोक लगाने की घोषणा के लिये प्रेरित किया। इस प्रकार अनेकों अबोध पशुओं की प्राण रक्षा हुई, जो अहिंसा के सिद्धान्त के प्रति प्रतिबद्धता एवं प्रतिपालन का जीता जागता प्रमाण है। अपनी कड़ी मेहनत तथा सिद्धांतपरक जीवन के कारण खरतरगच्छ के अनुयोयियों ने समाज के प्रत्यके वर्ग का सम्मान तथा प्रशंसा अर्जित की है।
देश के विभिन्न स्थलों पर खरतरगच्छ अनुयायियों द्वारा गौशाला तथा पशु चिकित्सालय का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है। समाज सेवा, चिकित्सा पत्रकारिता, कला, फिल्म निर्माण, राजनीति आदि विविध क्षेत्रों में खरतरगच्छ अनुयायियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। खरतरगच्छ अनुयायियों ने अपनी कड़ी मेहनत, सिद्धान्त परक, जीवन शैली, जिनशासन तथा समाज सेवा की उदात्त भावना एवं परोपकारी वृत्ति के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग का सम्मान तथा प्रशंसा अर्जित की है। अहिंसा एवं सत्य ऐसे निर्विवादित मूल्यभूत मूल्य हैं, जिनका प्रत्येक खरतरगच्छ अनुयायी बिना किसी अपवाद या समझौते के पालन करता है।
खरतरगच्छ अपनी 1000 वर्षों की गौरवशाली परम्परा, प्रखर चारित्र, सिद्धांत परक आचरण के कारण जैन समाज तथा देश में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर सका है, जिस पर हम सभी को गर्व है। इस गौरवशाली विरासत को अभिवर्द्धित करने तथा जिनशासन एवं समाज में गुणात्मक सकरात्मक परिवर्तन कर आगत सहस्राब्दी के लिये हम तत्पर एवं इस हेतु संकल्पित हैं।